पिघला है सोना दुउर गगन परी - The Indic Lyrics Database

पिघला है सोना दुउर गगन परी

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - लता मंगेशकर, सहगान | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - जाल | वर्ष - 1952

View in Roman

ल: पिघला है सोना दूर गगन पर
फ़ैल रहें हैं शाम के सायेको: भगवन तेरे सुन्दर रचना कितनी प्यारी है
तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी हैल: खामोशी कुछ बोल रही हैं
भेद अनोखे खोल रही हैं
पंख पखेर्ऊ सोच मे ग़ुम हैं
पेड़ खड़े है सिर झुकाए
पिघला है सोना ...धुंदले धुंदले मस्त नज़ारें
उड़ते बादल मुड़ते धारे
छुप के नज़र से जाने ये किस ने
हसरती ये खेल रचाए
पिघला है सोना ...कोई भी उठता राज़ न जाने
एक हक़ीक़त लाख़ फ़साने
एक ही जलवा शाम सवेरे
भेस बदल कर सामने आए
पिघला है सोना ...