इन लम्हों के दामन में पाकीज़ा से रिश्ते हैं - The Indic Lyrics Database

इन लम्हों के दामन में पाकीज़ा से रिश्ते हैं

गीतकार - जावेद अख्तर | गायक - सोनू निगम - मधुश्री | संगीत - ए आर रहमान | फ़िल्म - जोधा अकबर | वर्ष - 2008

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इन लम्हों के दामन में पाकीज़ा से रिश्ते हैं
कोई कलमा मोहब्बत का दोहराते फ़रिश्ते हैं
ख़ामोश सी है ज़मीन, हैरान सा फ़लक है
एक नूर ही नूर सा अब आसमान तलक है
नग़्मे ही नग्में हैं जागती सोती फिजाओं में
हुस्न है सारी अदाओं में
इश्क़ है जैसे हवाओं में
कैसा ये इश्क़ है, कैसा ये ख़्वाब है
कैसे जज़बात का उमड़ा सैलाब है
दिन बदले, रातें बदले, बातें बदली
जीने के अंदाज़ ही बदले हैं
इन लम्हों के दामन में पाकीज़ा से रिश्ते हैं
कोई कलमा मोहब्बत का दोहराते फ़रिश्ते हैं
समय ने ये क्या किया, बदल दी है काया
तुम्हे मैंने पा लिया मुझे तुमने पाया
मिले देखो ऐसे हैं हम कि दो सुर हों जैसे मद्धम
कोई ज़्यादा ना कोई कम किसी राग में
के प्रेम आग में जलते दोनों ही के तन भी है मन भी
मन भी है तन भी
तन भी है मन भी
मन भी है तन भी
मेरे ख्वाबों की इस गुलिस्ताँ में तुमसे ही तो बहार छाई है
फूलों में रंग मेरे थे लेकिन इनमें खुशबू तुम्हीं से आई है
क्यों है ये आरज़ू, क्यों है ये जुस्तजू
क्यों दिल बेचैन है, क्यों दिल बेताब है
दिन बदले, रातें बदले, बातें बदली
जीने के अंदाज़ ही बदले हैं
इन लम्हों के दामन में पाकीज़ा से रिश्ते हैं
कोई कलमा मोहब्बत का दोहराते फ़रिश्ते हैं...