गीतकार - नक़्श लायलपुरी, सैयद गुलरेज़? | गायक - हरिहरन | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - ताज महल | वर्ष - 2005
View in Romanअपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दो
आज रोको न मुझे हद से गुज़र जाने दो
अपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दोतुम जो आये तो बहारों पे शबाब आया है
इन नज़ारों पे भी हल्का सा नशा छाया है
अपनी आँखों का नशा और भी बढ़ जाने दोअपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दो
आज रोको न मुझे हद से गुज़र जाने दो
अपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दोको : सरगमसुर्ख़ होंठों पे गुलाबों का ग़ुमाँ होता है
ऐसा मन्ज़र हो जहाँ होश कहाँ रहता है
ये हसीं होंठ मेरे होंठों से मिल जाने दोअपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दो
आज रोको न मुझे हद से गुज़र जाने दो
अपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिखर जाने दो