दोंनों ही मोहब्बत के जज्बात में जलते हैं - The Indic Lyrics Database

दोंनों ही मोहब्बत के जज्बात में जलते हैं

गीतकार - जहीर आलम | गायक - अल्ताफ राजा | संगीत - मोहम्मद शफ़ी नियाज़ी | फ़िल्म - तुम तो ठहरे परदेसी (गैर-फिल्म) | वर्ष - 1998

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दोनों ही मोहब्बत के जज़्बात में जलते हैं
वो बर्फ़ पे चलते हैं हम आग पे चलते हैं
एहसास की शिकस्त से कुछ अश्क़ निकलते हैंज़िंदगी है और दिल-ए-नादान है
क्या सफ़र है और क्या सामान है
मेरे ग़मों को भी समझ कर देखिए
मुस्कुरा देना बहुत आसान है
एहसास की शिकस्त से ...ये बर्फ़ के टुकड़े हैं गर्मी से पिघलते हैं
एक रात ठहर जाएं हम घर में तेरे लेकिन
तुम्हारे घर दरवाज़ा है लेकिन तुम्हें खतरे का अंदाज़ा नहीं है
हमें खतरे का अंदाज़ा है लेकिन हमारे घर दरवाज़ा में नहीं है
एक रात ठहर जाएं ...मेरे काम का है न दुनिया के काम का
अरे दिल ही तुम्हें ख़ुदा ने दिया दस ग्राम का
एक रात ठहर जाएं ...छत पर न सुला देना हम नींद में चलते हैं
चोरी की मोहब्बत में अक्सर यही होता है
आदमी का है आजकल हाल एक सहमी सी चाह हो जैसे
और लोग यूं छुप के प्यार करते हैं कि प्यार करना गुनाह हो जैसे
चोरी की मोहब्बत में ...यूं तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
कच्ची उम्रों में मगर तजुर्बा कम होता है
चोरी की मोहब्बत में ...दरवाज़े से जाते हैं खिड़की से निकलते हैं
जिस दिन से हुई शादी ये हाल हमारा है
हळी से डरते हैं मेहंदी से घबराते हैं
उम्मीद-ए-वफ़ा रखें क्या उनसे भला कोई
न जिक्र कीजिए मेरी अदा के बारे में
और सुना है वो भी मुहब्बत का शौक़ रखने लगे
जिन्हें खबर ही नहीं वफ़ा के बारे में
उम्मीद-ए-वफ़ा रखें ...कपड़ों की तरह ना जो चेहरे बदलते हैं
दोनों ही मोहब्बत के ...