ये शमा तो जली रोशनी के झूठ - The Indic Lyrics Database

ये शमा तो जली रोशनी के झूठ

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - आया सावन झूम के | वर्ष - 1969

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ये शमा तो जली रोशनी के लिए
इस शमा से कहीं आग लग जाए तो
ये शमा क्या करे
ये हवा तो चली साँस ले हर कोई
घर किसी का उजड़ जाए आँधी में तो
ये हवा क्या करेचल के पूरब से ठण्डी हवा आ गई
उठ के पर्वत के काली घटा छा गई
ये घटा तो उठी प्यास सबकी बुझे
आशियाँ पे किसी के गिरीं बिजलियाँ तो
ये घटा क्या करे
ये शमा तो जली ...पूछता हूँ मैं सबसे कोई दे जवाब
नाख़ुदा की भला क्या ख़ता है जनाब
नाख़ुदा ले के साहिल के जानिब चला
डूब जाए सफ़ीना जो मँझधार में तो
नाख़ुदा क्या करे
ये शमा तो जली ...वो जो उलझन सी तेरे ख़्यालों में है
वो इशारा भी मेरे सवालों में है
ये निगाह तो मिली देखने के लिए
पर कहीं ये नज़र धोखा खा जाए तो
ये निगाह क्या करे
ये शमा तो जली ...