दो दिन की जिंदगी कैसी है जिंदगी - The Indic Lyrics Database

दो दिन की जिंदगी कैसी है जिंदगी

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - सत्यकाम | वर्ष - 1969

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दो दिन की ज़िंदगी कैसी है ज़िंदगी -२
कोइ न ये जाने
होऽ
भीतर अंधेरा है बाहर है रौशनी
देखें न परवाने
दो दिन की ज़िंदगी कैसी है ज़िंदगीअरमाँ की बस्ती जाने कैसी है बस्ती
उतनी ही सूनी
होऽ
उतनी ही सूनी जितनी छायी है मस्ती
नज़रों में बाँकपन आँखों में सौ चमन
सीने में वीरानेदो दिन की ज़िंदगी कैसी है ज़िंदगीपहले तो क्या क्या सपने दिखलाये दुनिया
फिर ख़ुद ही टूटा
होऽ
फिर ख़ुद ही टूटा सपना बन जाये दुनिया
दुनिया की चाह की, नग़मों की आह की
झूठे हैं अफ़सानेदो दिन की ज़िंदगी कैसी है ज़िंदगी
होऽफूलों ने देखा खिल के मुरझाना दिल का
तारों ने देखा
होऽ
तारों ने देखा जल के बुझ जाना दिल का
थे कल जो मेहरबाँ, थे कल जो राज़दाँ
निकले वो बेगानेदो दिन की ज़िंदगी कैसी है ज़िंदगी