बर्खा की रात में हे हो हा - The Indic Lyrics Database

बर्खा की रात में हे हो हा

गीतकार - उद्धव कुमार | गायक - गीता, सहगान | संगीत - 'जगमोहन 'सूरसागर'' | फ़िल्म - सरदार | वर्ष - 1955

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आहा ऽ
च: हो हा हो हे हो हा
गे: बर्खा की रात में हे हो हा
च: बर्खा की रात में हे हो हा
गे: (रस बरसे नील गगन से)-2
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2
गे: (रस बरसे नील गगन से)-2
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2

गे: (टप टप आये मेरा आंचल भिगोये
टप टप आये मेरे मुखड़े को धूये)-2
मेरा काँप काँप जाये जिया बूंदन से
रस बरसे नील गगन से
च: (बर्का की रात में हे हो हा)-2

गे: (कोई कहे बादल से मोती गिरे)-2
(कोई कहे रात हाये रोती फिरे)-2
मैं तो मांग लाई सावन को फागुन से
रस बरसे नील गगन से
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2

गे: (भीगे है तन फिर भी जलता है मन)-2
(जैसे के जल में लगी हो अगन)-2
राम सब को बचाये इस उलझन से
रस बरसे नील गगन से
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2
गे: (रस बरसे नील गगन से)-2
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2
गे: आहा ऽ
च: (बर्खा की रात में हे हो हा)-2$