सुन सखी मोरे मन की बात - The Indic Lyrics Database

सुन सखी मोरे मन की बात

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - लता | संगीत - शंकर-जयकिशन | फ़िल्म - राजहठ | वर्ष - 1956

View in Roman

सुन सखी मोरे मन की बात
कोयल तरसे आस को और बन को तरसे मोर
मैं तरसूँ उस प्रीत को और छाई घटा घनघोर
नदिया किनारे फिरूँ प्यासी
हाय पी बिना जियरा तरस-तरस रह जाए
ऐसा भी आए कोई बादल
हमारे अँगना रिमझिम प्यार लुटाए
सजना मिलन के गाऊँ मैं तराने
रंग भरे लो आ गए ज़माने
खोई रहूँ मैं क्यों राम जाने
ढूँढ रही हूँ प्यार के ख़ज़ाने
कुछ भी न अपनी खबरिया
मैं ऐसी भोली दिन कब आए कब जाए
नदिया किनारे फिरूँ
प्यासे हैं दोनों अँखियों के भौंरे
डालू किसी पर कजरा से डोरे
पंख पसारे चुप हैं निगोड़े
लूटेंगे दिल मधु के कटोरे
ढूँढे किसी को नजरिया
ये बैरी मौसम आग है लगाए
नदिया किनारे फिरूँ $