मेरी निगाह ने क्या काम - The Indic Lyrics Database

मेरी निगाह ने क्या काम

गीतकार - मजरूह | गायक - रफ़ी, निर्मला | संगीत - ओपी नैय्यर | फ़िल्म - मुसाफिरखाना | वर्ष - 1955

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मेरी निगाह ने क्या काम लाजवाब किया
कि तुझको लाखों में इंतख़ाब किया
झूठे ज़माने भर के
हाय जादू कैसा डार गए मोपे नीची नज़र कर के
जीते हैं मर-मर के
हाय ऐसे दो न हमें गोरी टुकड़े जिगर कर के
मैं बेक़रार नहीं प्यार की नज़र के लिए
कि तेरे तीर बहुत हैं मेरे जिगर के लिए
यहाँ भी दर्द-ए-जिगर का इलाज कौन करे
बस इक नज़र तेरी काफ़ी है उम्र भर के लिए
झूठे ज़माने भर
जब से तूने मेरे दिल का चमन आबाद किया
जब चली ठंडी हवा मैने तुझे याद किया
हम तो कहते ही नहीं कुछ मगर ऐ जान-ए-जहाँ
लोग कहते हैं कि तूने हमें बरबाद किया
झूठे ज़माने भर
यक़ीन हमको न उल्फ़त का तुम दिलाओ ज़रा
अब ऐसे देख के हमको न मुस्कुराओ ज़रा
चलो नहीं है तुम्हें हमसे वास्ता न सही
धड़कते दिल को संभालो नज़र उठाओ ज़रा
झूठे ज़माने भर