एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं रफ़ी - The Indic Lyrics Database

एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं रफ़ी

गीतकार - सुदर्शन फाकीरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - ताज अहमद खान | फ़िल्म - गैर-फिल्मी | वर्ष - 1960s

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एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं
जो ग़म-ए-दोस्त मे नशा है शराबों में नहींहुस्न की भीक न माँगेंगे न जलवों की कभी
हम फ़क़ीरों से मिलो खुल के हिजाबों में नहींहर जगह फिरते हैं आवारा ख़यालों की तरह
ये अलग बात है हम आपके ख़्वाबों में नहींन डुबो साग़र-ओ-मीना में ये ग़म ऐ 'फ़ाक़िर'
के मक़ाम इनका दिलों में है शराबों में नहीं