खुलि जो आंख तो वो था ना वो ज़माना था - The Indic Lyrics Database

खुलि जो आंख तो वो था ना वो ज़माना था

गीतकार - फरहत शहजादी | गायक - मेहदी हसन | संगीत - मेहदी हसन | फ़िल्म - कहना उसे (गैर-फिल्म) | वर्ष - 1984

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खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना थाग़मों ने बाँट लिया है मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना थाजुदा है शाख़ से गुल-रुत से आशियाने से
कली का जुर्म घड़ी भर का मुस्कुराना थाये क्या कि चन्द ही क़दमों में थक के बैठ गये
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना थामुझे जो मेरे लहू में डबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना थाख़ुद अपने हाथ से 'शहज़ाद' उसको काट दिया
कि जिस दरख़्त की टहनी पे आशियाना था