काँतों से छेदते हैं मेरे जिगर के छले - The Indic Lyrics Database

काँतों से छेदते हैं मेरे जिगर के छले

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी, खुमार बाराबंकवि | गायक - अमीरबाई कर्नाटकी | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - क़ीमत | वर्ष - 1946

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काँटों से छेड़ते हैं मेरे जिगर के छाले
मेरे जिगर के छाले
काँटों से छेड़ते हैं मेरे जिगर के छाले
मेरे जिगर के छाले
निर्धन से खेलते हैं ऊँचे मकान वाले
निर्धन से खेलते हैं ऊँचे मकान वालेदुनिया तो जा रही है अपनी बारात लेकर
दुनिया तो जा रही है अपनी बारात लेकर
कोई कुचल गया है ये कौन देखे-भाले
कोई कुचल गया है ये कौन देखे-भाले
काँटों से छेड़ते हैं मेरे जिगर के छालेशायद के बेकसों का भगवान भी नहीं है
शायद के बेकसों का भगवान भी नहीं है
मजबूर हम हैं जिस का जी चाहे वो सता ले
मजबूर हम हैं जिस का जी चाहे वो सता ले
काँटों से छेड़ते हैं मेरे जिगर के छाले