ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली, जान-ए-जहां - The Indic Lyrics Database

ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली, जान-ए-जहां

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - आशा भोसले - मोहम्मद रफी | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - तीसरी मंजिल | वर्ष - 1966

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ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली, जान-ए-जहां
ढूंढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशां
महफ़िल, महफ़िल, ऐ शमा, फिरती हो कहाँ
वो अंजाना ढूंढती हूँ, वो दीवाना ढूंढती हूँ
जलाकर जो छिप गया है, वो परवाना ढूंढती हूँ
गर्म है, तेज है, ये निगाहें मेरी
काम आ जाएगी सर्द आहें मेरी
तुम किसी राह में तो मिलोगे कहीं
अरे इश्क़ हूँ, मैं कहीं ठहरता ही नहीं
में भी हूँ गलियों की परछाई, कभी यहाँ, कभी वहाँ
शाम ही से कुछ हो जाता है मेरा भी जादू जवां
ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली, जान-ए-जहां .....
छिप रहें हैं यह क्या ढंग हैं आपका
आज तो कुछ नया रंग है आपका
आज की रात मैं क्या से क्या हो गई
आपकी सादगी तो बला हो गई
में भी हूँ गलियों की परछाई, कभी यहाँ, कभी वहाँ
शाम ही से कुछ हो जाता है, मेरा भी जादू जवां
ठहरिए तो सही, कहिए क्या नाम है
मेरी बदनामियों का वफ़ा नाम है
क़त्ल करके चलें, ये वफ़ा खूब है
हाए नादां तेरी, ये अदा खूब है
में भी हूँ गलियों की परछाई, कभी यहाँ, कभी वहाँ
शाम ही से कुछ हो जाता है, मेरा भी जादू जवां