बाबुल का घर छोड़ के गोरी - The Indic Lyrics Database

बाबुल का घर छोड़ के गोरी

गीतकार - सरशर सैलानी | गायक - सहगान | संगीत - हुस्नलाल-भगतराम | फ़िल्म - राखी | वर्ष - 1949

View in Roman

बाबुल का घर छोड़ के गोरी
हो गई आज पराई रे
डोली देख जियारा डोले
आँख नीर भर आई रे( न्यारी जग की रीत री सखियाँ
कौन किसी का मीत री सखियाँ ) -२
झूठी सबकी (?)
किसने प्रीत निभाई रेबाबुल का घर छोड़ के गोरी
हो गई आज पराई रे
डोली देख जियारा डोले
आँख नीर भर आई रेजिन गलियों में बचपन बीता
खोली आँख जवानी ने
उन गलियों से किया किनारा
सखियों की पटरानी ने
भईया का मन भर-भर आये
रोत चली मा जाई रेबाबुल का घर छोड़ के गोरी
हो गई आज पराई रे
डोली देख जियारा डोले
आँख नीर भर आई रेपी के प्यार में खो कर गोरी
हमको भूल ना जाना
रोज़ नहीं तो कभी-कभी
दो अक्शर लिख भिजवाना
धीरे-धीरे मधुर सुरों में
यही कहे शहनाई रे( बाबुल का घर छोड़ के गोरी
हो गई आज पराई रे
डोली देख जियारा डोले
आँख नीर भर आई रे ) -२