गम दिए मुस्तक़िल कितना नाज़ुक है दिलो - The Indic Lyrics Database

गम दिए मुस्तक़िल कितना नाज़ुक है दिलो

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - के एल सहगल | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - शाहजहां | वर्ष - 1946

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ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़मानादे उठे दाग लौ उनसे ऐ माह-ए-नौ कह सुनना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़मानादिल के हाथों से दामन छुड़ाकर
ग़म की नज़रों से नज़रें बचाकर
उठके वो चल दिये, कहते ही रह गये हम फ़साना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़मानाकोई मेरी ये रूदाद देखे, ये मोहब्बत की बेदाद देखे
फुक रहा है जिगर, पड़ रहा है मगर मुस्कुराना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़मानाग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना