इक दिन बीक जाएगा माती के मोले - The Indic Lyrics Database

इक दिन बीक जाएगा माती के मोले

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - सहगान, मुकेश | संगीत - आर डी बर्मन | फ़िल्म - | वर्ष - 1975

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इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा ...ला ला ललल्लल्ला(अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए )-(२)
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
धारा, तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ...(परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी )-(२)
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ...