मौत कभी भी - The Indic Lyrics Database

मौत कभी भी

गीतकार - साहिर | गायक - रफ़ी/रफ़ी, आशा | संगीत - ओपी नैय्यर | फ़िल्म - सोने की चिड़िया | वर्ष - 1958

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मौत कभी भी मिल सकती है लेकिन जीवन कल न मिलेगा
मरने वाले सोच समझ ले फिर तुझको ये पल न मिलेगा
( रात भर का है मेहमां अँधेरा
किसके रोके रुका है सवेरा )
रात जितनी भी संगीन होगी
सुबह उतनी ही रंगीन होगी
ग़म न कर गर है बादल घनेरा
किसके रोके रुका है
लब पे शिकवा न ला अश्क़ पी ले
जिस तरह भी हो कुछ देर जी ले
अब उखड़ने को है ग़म का डेरा
किसके रोके रुका है
यूँ ही दुनिया में आ कर न जाना
सिर्फ़ आँसू बहाकर न जाना
मुसुराहट पे भी हक़ है तेरा
किसके रोके रुका है
( आ कोई मिल के तदबीर सोचें
सुख के सपनों की ताबीर सोचें )
जो तेरा है वही ग़म है मेरा
किसके रोके रुका है