संभल के बैठो चांद है तारे भी हैं - The Indic Lyrics Database

संभल के बैठो चांद है तारे भी हैं

गीतकार - फारूक कैसर | गायक - मोहम्मद रफ़ी, सुमन कल्याणपुर | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - रूपलेखा | वर्ष - 1962

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र : स.म्भल के बैठो ज़रा छाँव में बहारों की
कहीं नज़र न लगे तुमको चाँद-तारों कीचाँद है तारे भी हैं और यह तन्हाई है -२
तुमने क्या दिल को जलाने की क़सम खई है
चाँद है तारे भी ...सु : इस तरह दर्द-ए-मोहब्बत का न इकरार करो -२
ये तो सरकार मेरे प्यार की रुसवाई है
र : तुमने क्या दिल को ...
सु : चाँद है तारे भी ...र : ढल चुकी रात ये आँचल तो हटा दो रुख से -२
किसलिए चाँद से चेहरे पे घटा छाई हैसु : प्यार भी करता है शिकवे भी किया करता है -२
सारी दुनिया से निराला मेरा सौदाई है
र : तुमने क्या दिल को ...
सु : चाँद है तारे भी ...