रातों को जब निन्द उद जाए - The Indic Lyrics Database

रातों को जब निन्द उद जाए

गीतकार - शैलेंद्र सिंह | गायक - लता मंगेशकर, सहगान | संगीत - सलिल चौधरी | फ़िल्म - मेम दीदी | वर्ष - 1961

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ळत: रातों को जब नींद उड़ जाए
घड़ी घड़ी याद कोई आए
किसी भी सूरत से बहले न दिल
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाए -------- क्ष २चोरुस: ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा -------- क्ष २ळत: अहाहाआअ~~~~~~~ळत: चंदा को देख, आग लग जाए
तनहई में चाँदनी न भाए
ठंडी हवाओं में काँपे बदन
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जायेचोरुस: ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा -------- क्ष २ळ: अहहाआअ~~~~ळत: होंठों पे एक नाम आए जाए
आँखों में एक छब मुस्काए
दर्पण में सूरत पराई दिखे
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाएC: ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा -------- क्ष २ळ: अहहहाअ~~~~~~ळत: सखियों के बीच दिल घबराए
डर हो कहीं बात खुल जाए
लेकिन अकेले में धड़के जिया
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जायेC: ये तो प्यार का रोग है रोग बुरा
जिसे एक दफ़ा ये लगा तो लगा -------- क्ष २ळ: अहहह्हाआ~~~~~ळत: रातों को जब नींद उड़ जाए
घड़ि घड़ि याद कोई आए
किसी भी सूरत से बहले न दिल
तब क्या किया जाए बोलो क्या किया जाए