शाम ढले, खिड़की तले - The Indic Lyrics Database

शाम ढले, खिड़की तले

गीतकार - राजिंदर कृष्ण | गायक - चितालकर, लता | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - अलबेला | वर्ष - 1951

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शाम ढले, खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
घड़ी-घड़ी खिड़की में खड़ी
तुम तीर चलाना छोड़ दो
रोज़-रोज़ तुम मेरी गली में
चक्कर क्यों हो काटते
अजी, चक्कर क्यों हो काटते
सच्ची-सच्ची बात कहूँ मैं
अजी तुम्हारे वास्ते, तुम्हारे वास्ते
जाओ, जाओ, होश में आओ
यूँ आना-जाना छोड़ दो
मुझसे तुम्हें क्या मतलब है
ये बात ज़रा बतलाओ
बात फ़कत इतनी सी है
कि तुम मेरी हो जाओ
आओ आओ तुम मेरी हो जाओ
ऐसी बातें, अपने दिल में
ऐ साहिब तुम लाना छोड़ दो
चार महीने मेहनत की है
अजी रँग कभी तो लाएगी
जाओ-जाओ जी यहाँ तुम्हारी
दाल कभी गलने न पाएगी
अजी दाल कभी गलने न पाएगी
दिलवालों, मतवालों पर तुम
रौब जमाना छोड़ दो
अजी रौब जमाना छोड़ दो
शाम ढले ...$