गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - बप्पी लाहिड़ी | फ़िल्म - ज्योति | वर्ष - 1981
View in Romanइस नज़ाकत को क़यामत से न कम समझो
हमें ऐ चाहने वालो न मिट्टी का सनम समझोथोड़ा रेशम लगता है
हो थोओड़ा शीशा लगता है( थोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता है
हीरे मोती जड़ते हैं
थोड़ा सोना लगता है
ऐसा गोरा बदन तब बनता है ) -२थोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता हैओ ( दिल को प्यार का रोग लगा के, ज़ख़्म बनाने पड़ते हैं
ख़ून-ए-जिगर से अरमानों के, फूल खिलाने पड़ते
हैं ) -२
दर्द हज़ारों उठते हैं
कितने काँटे चुभते हैं
कलियों का चमन तब बनता हैथोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता है
हीरे मोती जड़ते हैं
थोड़ा सोना लगता है
ऐसा गोरा बदन तब बनता हैथोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता हैओ हो ओ ओ(हँस के दो बातें क्या कर लीं, तुम तो बन बैठे सैयाँ
पहले इन का मोल तो पूछो, फिर पकड़ो हमरी बैयाँ) -२
दिल दौलत दुनिया तीनों
प्यार में कोई हारे तो
वो मेरा सजन तब बनता है( थोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता है
हीरे मोती जड़ते हैं
थोड़ा सोना लगता है
ऐसा गोरा बदन तब बनता है ) -२थोड़ा रेशम लगता है
थोओड़ा शीशा लगता हैओ हो ओ ओ आ आ आ ओ ओ ओ ओ