अंदर की बात है - The Indic Lyrics Database

अंदर की बात है

गीतकार - मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली, शैलेंद्र सिंह सोढ़ी | गायक - शैलेंद्रा सिंग | संगीत - उषा खन्ना | फ़िल्म - आदत से मजबूर | वर्ष - 1982

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अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर
मई हु आदत से मजबूर
मई हु आदत से मजबूर
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर

मई सौदागर बड़ा निराला
बेच के खुशिया गम लेने वाला
अंगारों को गले लगा लो
ोरो को देकर फूलो की माला
बीता बिता बचपन आयी जवानी
पर न गयी मेरी आदत पुराणी
पुम पराम् पुम
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर

जब लगती है चोट किसी को
दर्द से मेरा दिल रोता है
जब देखु मई जुलम किसी पर
न जाने मुझे क्या होता है
खेलु खेलु खेलु पथरो से खेलु
जुलम करे जो जन उसकी लेलु
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर

अपने लिए तो सब जीते है
औरों की खातिर जी कर देखो
अपना दुःख तो सब सहते है
ोरो के आँसू पी कर देखो
सीखो सीखो सीखो यही तरीका
जीने का है बस यही सलीका
पुम पराम् पुम
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर

अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर
मई हु आदत से मजबूर
मई हु आदत से मजबूर
अंदर की बात है
मालिक के हाथ है
इसमें मेरे क्या कसूर.