ज़मीन कागज़ की अब चार दिनों की छुट्टी है - The Indic Lyrics Database

ज़मीन कागज़ की अब चार दिनों की छुट्टी है

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, सहगान | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - आस का पंछी | वर्ष - 1961

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ज़मीं काग़ज़ की बन जाये, समुन्दर रोशनाई का
बयाँ फिर भी न होगा हमसे यह किस्सा जुदाई काचार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन हैको : अब चार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन हैदिल अपना अभी से धड़के है देखेंगे उन्हें तो क्या होगा
हम होश भी अपने खो देंगे मस्ती से भरा जलवा होगा
वह सामने हो फिर आये मज़ा, कुछ कहना है, कुछ सुनना हैको : अब चार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन हैवो भी तो हमारी राहों में ज़ुल्फ़ों को सँवारे आयेंगे
और फूल चमेली के गजरे खुश हो के हमें पहनायेंगे
अब चाँद की तरह चमकना है, सूरज की तरह से निकलना हैको : अब चार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन हैआँखों में जवाँ शिक़वे होंगे, होंठों पे हँसी लहरायेगी
साग़र से मिलेगी जब नदिया तूफ़ान पे रौनक आयेगी
अब बादल बनके बरसना है, मौजों की तरह से उभरना हैको : अब चार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन हैवह हमसे कहेंगे शरमाके, परदेस गये थे क्या लाये
हम उनसे कहेंगे जान-ए-जहां दिल अपना बचा के ले आये
अब आंख मिलाओ बात करो, हम सामने हैं क्या पदर्आ हैको : अब चार दिनों की छुट्टि है और उनसे जा कर मिलना है
जिस माँग ने दिल को माँग लिया उस माँग में तारे भरन है