जहान में जिनकी क़िस्मत बहुत पुरदर्द है - The Indic Lyrics Database

जहान में जिनकी क़िस्मत बहुत पुरदर्द है

गीतकार - सरशर सैलानी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - हुस्नलाल-भगतराम | फ़िल्म - बिरहा की रात | वर्ष - 1950

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जहाँ में जिनकी उम्मीदों के बेड़े पार होते हैं
वो ख़ुश्क़िस्मत हज़ारों में कहीं दो-चार होते हैंबहुत पुरदर्द है ऐ सुनने वालों दास्ताँ मेरी
गो ग़म की दास्ताँ मेरी
हज़ारों रंज हैं और एक जान-ए-नातवाँ मेरी
वो जान-ए-नातवाँ मेरी
बहुत पुरदर्द है ...सफ़र वो ज़िन्दगी क्यों तूने बख्शा बख्शने वाले
ओ बख्शने वाले
ज़रा ये भी बता दे आके मंज़िल है कहाँ मेरी
कि मंज़िल है कहाँ मेरी
बहुत पुरदर्द है ...मुहब्बत और नाकामी ( जवानी और बरबादी ) -२
इन्हीं दो चार लफ़्ज़ों में ( छुपी है दास्ताँ मेरी ) -२
बहुत पुरदर्द है ...