आ रात जाति है चुपके से मिल जाएं डोनों - The Indic Lyrics Database

आ रात जाति है चुपके से मिल जाएं डोनों

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले | संगीत - आर डी बर्मन | फ़िल्म - बेनाम | वर्ष - 1974

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आ रात जाती है चुपके से मिल जायें दोनों
चलके कहीं अपनी आग में जल जायें दोनोंअरे आप क्यों चुप गये आईये हमारे साथ गाईये नामौक़ा भी है आरज़ू भी लग जा तू मेरे गले से
रंगीन सी बेख़्हुदी में हों जाम दो साथ लेके
ये बेक़रारी क मौसम ये सांस लेता अंधेरा
यूँ डाल ज़ुल्फ़ों के साये फिर ना कभी हो सवेरा
हाथों में ये हाथ लेके मचल जायें दोनों
दो रंग जैसे कि मिलते हैं मिल जायें दोनोंआ रात जाती है चुपके से मिल जायें दोनों
चलके कहीं अपनी आग में जल जायें दोनोंप्याले में क्या है मुझे तो अपने लबों की पिला दे
बुझ ना सकी जो उमर भर वो प्यास तू ही बुझा दे
नज़दीक तू इतनी आ जा सीने में पड़ जाये हलचल
देके बदन का सहारा मुझको उड़ाये लिये चल
खो जायें ऐसे कि फिर न संभल पायें दोनों
तडपें कुछ आज इस तरह से बहल जायें दोनोंआ रात जाती है चुपके से मिल जायें दोनों
चलके कहीं अपनी आग में जल जायें दोनो.