काबे में रहो चाहे याह मानो वो मानो - The Indic Lyrics Database

काबे में रहो चाहे याह मानो वो मानो

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - सहगान, महेंद्र कपूर, बलबीर | संगीत - एन दत्ता | फ़िल्म - धर्मपुत्र | वर्ष - 1961

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ब : काबे में रहो या काशी में
हाँ
निस्बत तो उसी की ज़ात से है
म : हाँ
तुम राम कहो के रहीम कहो
मतलब तो उसी की बात से है
दो : मतलब तो उसी की बात से हैब: ये मस्जिद है वो बुतखाना -२
दो : चाहे ये मानो चाहे वो मानो -२
मानो ये मानो चाहे वो मानोब: ये मस्जिद है वो बुतखाना
चाहे ये मानो चाहे वो मानो
म: भई
मकसद तो है दिल को समझाना -२
दो : मानो ये मानो चाहे वो मानोब : ये मस्जिद है वो बुतखाना
को : ये मस्जिद है वो बुतखाना
म : मकसद तो है दिल को समझाना
को : मकसद तो है दिल को समझाना
म : ये मस्जिद है वो बुतखाना
मकसद तो है दिल को समझाना
को : चाहे ये मानो चाहे वो मानो -२( हाँ
ये शेख़-ओ-बरहमन के झगड़े ) -२
सब नासमझी की बाते हैं
हमने तो है बस इतना जाना
भई हमने तो है बस इतना जाना
चाहे ये मानो चाहे वो मानोगर जज़्ब-ए-मुहब्बत सादिक हो
हर दर से मुरादे मिलती हैं
मंदिर से मुरादे मिलती हैं
मस्जिद से मुरादे मिलती हैं
काबे से मुरादे मिलती हैं
काशी से मुरादे मिलती हैं
हर घर है उसी का काशाना
भी हर घर है उसी का काशाना
चाहे ये मानो चाहे वो मानोये मस्जिद है वो बुतखाना
मकसद तो है दिल को समझाना
चाहे ये मानो चाहे वो मानो