रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है - The Indic Lyrics Database

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है

गीतकार - गुलजार | गायक - आशा भोसले | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - दिल पडोसी है | वर्ष - 1987

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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है
रात खामोश है रोती नहीं, हँसती भी नहीं
काँच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है
पाल खोले कोई बजरा सा बहा जाता है
एक सैलाब है साहिल पे बिछा जाता है
चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है
और सन्नाटों की एक धूल उडी जाती है
काश एक बार कभी नींद से उठकर तुम भी
हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है