समाजी थी के ये घर मेरा हैं - The Indic Lyrics Database

समाजी थी के ये घर मेरा हैं

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - आशा भोंसले | संगीत - रवि | फ़िल्म - काजल | वर्ष - 1965

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समझी थी के ये घर मेरा है
मालूम हुआ मेहमान थी मैं
हो जिन्हें अपना-अपना कहती थी
हो उन सबके लिये अनजान थी मैंइस तरह न मुझको ठुकराओ
इक बार गले से लग जाओ
हाय मैं अब भी तुम्हारी हूँ लोगों
रूठो न अगर नादान थी मैंमेरा खोया हुआ बचपन ला दो मुझे
क्या दोष हुआ समझा दो मुझे
वो होंठ भी ना क्यूँ कहते हैं
जिन होंठों की मुस्कान थी मैंतुम शाद रहो आबाद रहो
अब मैं तुम सबसे दूर चली
हाय परदेस बनी हैं वो गलियाँ
जिन गलियों की पहचान थी मैं