जंग जो चांद रोज़ होती है मेरे दुश्मन मेरे भाई - The Indic Lyrics Database

जंग जो चांद रोज़ होती है मेरे दुश्मन मेरे भाई

गीतकार - जावेद अख्तर | गायक - हरिहरन | संगीत - अनु मलिक | फ़िल्म - बॉर्डर | वर्ष - 1997

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जंग जो चंद रोज़ होती है ज़िंदगी बरसों तलक रोती है
सन्नाटे की गहरी छांव खामोशी से जलते पांव
ये नदियों पर टूटे हुए पुल धरती घायल है व्याकुल
ये खेत बमों से झूलते हुए ये खाली रस्ते सहमें हुए
ये मातम करता सारा समां ये जलते घर ये काला धुआं
हो हो होमेरे दुश्मन मेरे भाई मेरे हमसाए
मुझसे तुझसे हम दोनों से ये जलते घर कुछ कहते हैं
बरबादी के सारे मंज़र कुछ कहते हैं हाय
मेरे दुश्मन मेरे भाई ...बारूद से बोझल सारी फ़िज़ां है मौत की बू फैलती हवा
ज़ख्मों पे है छाई लाचारी गलियों में है फिरती बीमारी
ये मरते बच्चे हाथों में ये माँओं का रोना रातों में
मुरदा बस्ती मुरदा है नगर चेहरे पत्थर हैं दिल पत्थर
मेरे दुश्मन मेरे भाई ...जलते घर बरबादी के सारे मंज़र सब मेरे नगर सब तेरे नगर
ये कहते हैं
इस सरहद पर फुंफकारेगा कब तक नफ़रत का ये अजगर
हम अपने अपने खेतों में
गेनूं की जगह चावल की जगह बंदूकें क्यों बोते हैं
जब दोनों ही की गलियों में कुछ भूखे बच्चे रोते हैं