अपनि उल्फत पे तो किताना अच्छा होता - The Indic Lyrics Database

अपनि उल्फत पे तो किताना अच्छा होता

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - आराधना | वर्ष - 1969

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अपनी उल्फ़त पे ज़माने
का न पेहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई
न सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने
का न पेहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

पास रहकर भी बहुत
दूर बहुत दूर रहे
एक बंधन में बंधे
फिर भी तो हम दूर रहे
पास रहकर भी बहुत
दूर बहुत दूर रहे
एक बंधन में बंधे
फिर भी तो हम दूर रहे
मेरी राहों में न
उलझन का अँधेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई
न सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

दिल मिले आँख मिली
प्यार न मिलने पाये
बाग़बान कहता है दो
फूल न खिलने पाएं

दिल मिले आँख मिली
प्यार न मिलने पाये
बाग़बान कहता है दो
फूल न खिलने पाएं
अपनी मंज़िल को जो
काँटों ने न घेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने
का न पेहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

अजब सुलगती हुयी
लकड़ियां हैं जग्वाले
मिले तो आग उगलते
काटे तो धूंवा करें
अजब सुलगती हुयी
लकडियाँ है जग्वाले
मिले तो आग उगलते कटे
तो धूंवा करें
अपनी दुनिया में भी सुख
चैन का पहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने
का न पेहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई
न सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता.