एक रात में दो-दो चाँद खिले - The Indic Lyrics Database

एक रात में दो-दो चाँद खिले

गीतकार - राजिंदर कृष्ण | गायक - मुकेश, लता | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - बरखा | वर्ष - 1959

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एक रात में दो-दो चाँद खिले
एक घूँघट में, एक बदली में
अपनी अपनी मंज़िल से मिले
एक घूँघट में, एक बदली में
एक रात में दो-दो चाँद खिले ...

बदली का वो चाँद तो सबका है
घूँघट का ये चाँद तो अपना है
मुझे चाँद समझने वाले बता
ये रात है या कोई सपना है
एक रात में दो-दो चाँद खिले ...

मालूम नहीं दो अनजाने
राही कैसे मिल जाते हैं
फूलों को अगर खिलना है तो वो
वीरानों में खिल जाते हैं
एक रात में दो-दो चाँद खिले ...$