एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ - The Indic Lyrics Database

एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - गीता | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - कागज के फूल | वर्ष - 1959

View in Roman

एक दो तीन चार, पचाका चिका छुम-4

श: रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ राम
मैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
( मारे अखियाँ
को: पचाका चिका छुम )-2

श: एक रूप के लाख पुजारी, गोरे काले हलके भारी
किसी को क्या मालूम लड़ी है किस बालम से आँख हमारी
लड़ी है किस बालम से आँख
ए जी हमसे
श: नहीं नहीं नहीं नहीं इनसे
लम्बी नाक है इनकी, आँखों पे तिशमा सवार है
का हमसे
श: अरे नहीं नहीं नहीं नहीं इनसे
सूखे गाल हैं इनके, सूरत भी काला बुखार है
सूरत भी काला बुखार है
ओ जी गोरी हमसे, ओह हो
श: अरे छी छी छी

मैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
मारे अखियाँ
को: पचाका चिका छुम
श: मारे अखियाँ
रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ राम

श: छैल-छबीला है बाँका बालम हो
बनी हूँ मैं जिनकी दीवानी
पिया ही जाने भेद जिया का
किसको सुनाऊँ प्यार की बानी किसको सुनाऊँ मैं
अजी हमको
श: नहीं नहीं नहीं नहीं उनको
भेंगी आँख है जिनकी, मूछों पर छाई बहार है
का हमको
श: अरे नहीं नहीं नहीं नहीं अरे उनको
मुखड़ा चाँद है जिनका, नैनों में जिनके ख़ुमार है
नैनों में जिनके ख़ुमार है
कौन वो सिपहिया और हम
श: अरे जा जा जा

मैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
मारे अखियाँ
को: पचाका चिका छुम
श: मारे अखियाँ
रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ राम$