जकमोन से कलेजा चुउर हुआ ये क्या जिंदगी है - The Indic Lyrics Database

जकमोन से कलेजा चुउर हुआ ये क्या जिंदगी है

गीतकार - शकील बदायुँनी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - कोहिनुर | वर्ष - 1960

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ज़ख़मों से कलेजा चूर हुआ
हद हो गई ग़म में नालों की
क्या हूँही तबाही होती है
दुनिया में मोहब्बत-वालों कीये क्या ज़िंदगी है, ये कैसा जहाँ है -२
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२कहीं है कफ़स में किसीका बसेरा
कहीं है निगाहों में ग़म का अंधेरा
कहीं दिल का लुटता हुआ कारवां है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२यहाँ आदमी आदमी का है दुश्मन
यहाँ चाक इनसानियत का है दामन
मोहब्बत का उजड़ा हुआ आशियां है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२ये बेरहम दुनिया समझ में न आए
यहाँ कर रहे हैं सितमग़र ख़ुदाई
न जाने तू ऐ दुनियावाले कहाँ है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२ये क्या ज़िंदगी है, ये कैसा जहाँ है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है