शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है - The Indic Lyrics Database

शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल | फ़िल्म - आशा | वर्ष - 1980

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शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
लब तक आते-आते हाथों से साग़र छूट जाता है
काफ़ी बस अरमान नहीं, कुछ मिलना आसान नहीं
दुनिया की मजबूरी है, फिर तक़दीर ज़रूरी है
ये दो दुश्मन हैं ऐसे, दोनों राज़ी हो कैसे
एक को मनाऊँ तो, दूजा रूठ जाता है
बैठे थे किनारे पे, मौजों के इशारे पे
हम खेले तूफ़ानों से, इस दिल के अरमानों से
हमको ये मालूम न था, कोई साथ नहीं देता
माँझी छोड़ जाता है, साहील छूट जाता है
दुनिया एक तमाशा है, आशा और निराशा है
थोड़े फूल हैं, काँटे हैं, जो तकदीर ने बाँटे हैं
अपना-अपना हिस्सा है, अपना-अपना किस्सा है
कोई लुट जाता है, कोई लूट जाता है