नाज़ों के पले कांटों पे चले - The Indic Lyrics Database

नाज़ों के पले कांटों पे चले

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - तलत महमूद | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - शहंशाह | वर्ष - 1953

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नाज़ों के पले
(नाज़ों के पले काँटों पे चले
ऐसा भी जहाँ में होता है
तक़दीर के ज़ालिम हातों से
दिल खून(?) के आँसू रोता है)-२
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्सजिस दिन में चराग(?) रहता था
हाथ उदती है उन हैवानों में
मकमल पे न रख ते थे जो कदम
फिरते हैं वो रेकिस्तानों में
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्सचलने का सहारा कोई नहीं
रुकने क ठिकाना कोई नहीं
इस हाल में काम आने वला
अपना बेगाना कोई नहीं
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्सदुनिया में किसी को भी अपनी
क़िस्मत क लिखा मालूम नहीं
सामान हैं लाखों बरसों के
पर कल क पता मालूम नहीं
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्स