जिन रातों में निन्द उद जाति हैं - The Indic Lyrics Database

जिन रातों में निन्द उद जाति हैं

गीतकार - आरज़ू लखनवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - हंसराज बहल | फ़िल्म - रात की रानी | वर्ष - 1949

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जिन रातों में नींद उड़ जाती है, क्या कहर की रातें होती हैं
दरवाजों से टकरा जाते हैं, दीवारों से बातें होती हैंघिरघिर के जो बदल आते हैं और बिन बरसे खुल जाते हैं
आशाओं की झूठी दुनिया में सूखी बरसातें होती हैजब वो नहीं होते पहलू में और लम्बी रातें होती है
याद आके सताती रहती है और दिल से बातें होती हैंहँसाने में जो आँसू आते हैं, दो तस्वीरें दिखलाते हैं
हर रोज जनाजे उठाते हैं, हर रोज बारातें होती हैहिम्मत किसकी है जो पुछ सके ये आरजु-ए-सौदाई से
क्यूँ साहिब आखिर अकेले में ये किससे बातें होती हैं