गीतकार - सरशर सैलानी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - रोशन | फ़िल्म - रागरंग | वर्ष - 1952
View in Romanशक़ नहीं रुपये में पाई का
दुनिया है नाम सफ़ाई काये दुनिया हेरा फेरी है
कभी तेरी है तो कभी मेरी है
तुंदुना तुंदुना शूर, कली कलिंगन शूर
ओ ओ ओ बाबूजी, ओ बाबूजी, खेल सफ़ाई का
शक़ नहीं ...चटक चटक चटकारे लेकर
सुनने वाले मेरे तराने
मुफ़्त बारी के गये ज़माने
जळ निकालो दो दो आने
ओ ना ना एक आना हम नहीं माँगता
दिन है ये महंगाई का
शक़ नहीं ...धन दौलत के मतवालों की
हर बात निराली होती है
बाज़ार में निकले दीवाला
और घर में दीवाली होती है
है ये भी रंग कमाई का
शक़ नहीं ...