ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ है - The Indic Lyrics Database

ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ है

गीतकार - शहरयारी | गायक - तलत अज़ीज़ | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - उमराव जान | वर्ष - 1981

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ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ है
कल भी इत्तिफ़ाक़ थी
आज भी इत्तिफ़ाक़ है
जाम पकड़ बढ़ा के हाथ
मांग दुआ घटे न साथ
जान-ए-वफ़ा तेरी कसम
कहते हैं दिल की बात हम
गर कोई मेल हो सके
आँखों का खेल हो सके
अपने को खुशनसीब जान
वक़्त को मेहरबान मान
मिलते हैं दिल कभी कभी
वरना है अजनबी सभी
मेरे हमदम मेरे मेहरबां
हर ख़ुशी इत्तिफ़ाक़ है
कल भी इत्तिफ़ाक़ थी
आज भी इत्तिफ़ाक़ है
हुस्न है और शबाब है
ज़िन्दगी कामयाब है
बज़्म यूँ ही खिली रहे
अपनी नज़र मिली रहे
रंग यूँ ही जमा रहे
वक़्त यूँ ही थमा रहे
साज़ की लय पे झूम ले
ज़ुल्फ़ के फन को चूम ले
मेरे किए से कुछ नहीं
तेरे किए से कुछ नहीं
मेरे हमदम मेरे मेहरबां
ये सभी इत्तिफ़ाक़ है
ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ है
कल भी थी इत्तिफ़ाक़ है
आज भी इत्तिफ़ाक़ है
कोई तो बात कीजिये
यारों का साथ दीजिये
कभी गैरों पे भी अपनों का गुमां होता है
कभी अपने भी नज़र आते हैं बेगाने से
कभी ख़्वाबों में चमकते हैं मुरादों के महल
कभी महलों में उभर आते है वीराने से
कोई रुत भी सदा नहीं
क्या हो कब कुछ पता नहीं
ग़म फज़ुल है ग़म न कर
आज का जश्न कम न कर
मेरे हमदम मेरे मेहरबां
हर ख़ुशी इत्तिफ़ाक़ है
कल भी इत्तिफ़ाक़ थी
आज भी इत्तिफ़ाक़ है
खोये से हो क्यों इस कदर
ढूढ़ती है किसे नज़र
आज मालूम हुआ पहले ये मालूम न था
चाहतें बेहद के पशेमान भी हो जाती है
दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीं नज़रे
देखते देखते अन्जान भी हो जाती हैं
यार जब अजनबी बने
प्यार जब बेरुख़ी बने
दिल पे सह जा गिला न कर
सबसे हँसकर मिला नज़र
मेरे हमदम मेरे मेहरबां
दोस्ती इत्तिफ़ाक़ है
कल भी इत्तिफ़ाक़ थी
आज भी इत्तिफ़ाक़ है