काश्मिर की कली हूँ मैं, मुझ से ना रुठो बाबूजी - The Indic Lyrics Database

काश्मिर की कली हूँ मैं, मुझ से ना रुठो बाबूजी

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - जंगली | वर्ष - 1961

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काश्मिर की कली हूँ मैं
मुझ से ना रुठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूँगी
कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं
रंगत मेरी बहारों में, दिल की आग चनारों में
कुछ तो हम से बात करो इन बहके गुलजारों में
प्यार पे गुस्सा करते हो, तेरा गुस्सा हमको प्यारा है
यही अदा तो कातिल है, जिसने हमको मारा है
छोडो जी नाराजी को, तोड़ो इस ख़ामोशी को
आप अजब है शेख जी समझे ना शहजादी को