ज़िहाल-ए-मस्कीं मकुन बा-रंजिश - The Indic Lyrics Database

ज़िहाल-ए-मस्कीं मकुन बा-रंजिश

गीतकार - गुलज़ार | गायक - मुकेश | संगीत - राम गांगुली | फ़िल्म - आग | वर्ष - 1948

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ज़िहाल-ए-मस्कीं मकुन बा-रंजिश
बहाल-ए-हिज्रा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है
वो आ के पहलू में ऐसे बैठे
कि शाम रंगीन हो गई है
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत
ज़रा सी ग़मगीन हो गई है
अजीब है दिल के दर्द यारों
न हो तो मुश्किल है जीना इसका
जो हो तो हर दर्द एक हीरा
हर एक ग़म है नगीना इसका
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है
जैसे घूँघट उतर रहा है
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ
हमारे दिल से गुज़र रहा है
ये शर्म है, या हया है, क्या है
नज़र उठाते ही झुक गई है
तुम्हारी पलकों से गिर के शबनम
हमारी आँखों में रुक गई है