कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं - The Indic Lyrics Database

कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं

गीतकार - मुनीर नियाज़िक | गायक - मेहदी हसन | संगीत - हसन लतीफ लीलक | फ़िल्म - मेहदी हसन की बेहतरीन ग़ज़लें (गैर फ़िल्म) | वर्ष - 1985

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कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं
अपने अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैंमेरे लिये ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिये बेगाना हूँ
फिर भी ये एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैंइनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में
मेरी ये मजबुरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैंसबकी सुन कर चुप रहते हैं दिल की बात नहीं कहते
आते आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं