वक्त के धांचे में पत्थर से शिशा तकरा के - The Indic Lyrics Database

वक्त के धांचे में पत्थर से शिशा तकरा के

गीतकार - फौक जामी | गायक - आनंदकुमार सी | संगीत - राजकमल | फ़िल्म - सावन को आने दो | वर्ष - 1979

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वक़्त के ढाँचे में अपनी ज़िंदगी को ढाल कर
मुस्कुराओ मौत की आँखों में आँखें डाल करपत्थर से शीशा टकरा के, वो कहते हैं दिल टूटे न
उस धन की कीमत कुछ भी नहीं, जिस धन को लुटेरा लूटे नदो आँखों के टकराने से
अफ़साने बनते हैं लेकिन
कुछ ऐसे फ़साने हैं जिनका
काँटों से दामन छूटे न
पत्थर से शीशा टकरा के ...आँखों का इशारा धोखा था
बातों का सहारा धोखा था
अब ग़म में दिल डूबे लेकिन
मँझधार से नाता टूटेए न
पत्थर से शीशा टकरा के ...तूफ़ाँ में चलते रहना है
शोलों में जलते रहना है
वो मंज़िल क्या जिस मंज़िल पे
पैरों के छाले फूटे न
पत्थर से शीशा टकरा के ...