ज़रा सामने तो आओ छलिए - The Indic Lyrics Database

ज़रा सामने तो आओ छलिए

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - हकीकत | वर्ष - 1964

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ज़रा सामने तो आओ छलिए
छुप-छुप छलने में क्या राज़ है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज है
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो, ऐसा कभी ना हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ के सुख से कभी ना सो सकता
हमें डरने की जग में क्या बात है
जब हाथ में तिहारे मेरी लाज है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज है
प्रेम की है ये आग सजन जो इधर उठे और उधर लगे
प्यार का है ये तार पिया जो इधर सजे और उधर सजे
तेरी प्रीत पे हमें बड़ा नाज़ है
मेरे सर का तू ही रे सरताज है