एक चमेली के मंडवे तले - The Indic Lyrics Database

एक चमेली के मंडवे तले

गीतकार - मख़दूम मुहिउद्दीन | गायक - आशा भोसले - मोहम्मद रफी | संगीत - इकबाल कुरैशी | फ़िल्म - चा चा चा | वर्ष - 1964

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एक चमेली के मंडवे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़-ए-वफ़ा, प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन प्यार की आग में जल गए
ओस में भीगते, चांदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा-रू ताज़ा-दम फूल पिछले पहर
ठंडी ठंडी सुबुक-रौ चमन की हवा
सर्फ़-ए-मातम हुई
काली काली लटों से लिपट ग़र्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
दो बदन प्यार की आग में जल गए
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूर-ओ-ज़ुल्मात
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयक़दे के दराड़ों में देखा उन्हें
दो बदन प्यार की आग में जल गए
अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारागर तेरी ज़म्बील में
नुस्ख़ा-ए-कीमिया-ए-मोहब्बत भी है
कुछ इलाज-ओ-मुदावा-ए-उल्फ़त भी है