आह को चाही एक उमर असर होने ताकी - The Indic Lyrics Database

आह को चाही एक उमर असर होने ताकी

गीतकार - ग़ालिब | गायक - सुरैया | संगीत - गुलाम मोहम्मद | फ़िल्म - मिर्जा गालिब | वर्ष - 1954

View in Roman शमा हर रँग में जलती है सहर होने तक
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आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे ज़ुल्फ़ के सर होने तकआशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तकहम ने माना के तग़कुल न करोगे लेकिन
खाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होने तकग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो कुज़-मर्ग-ए-इलाज
शमा हर रँग में जलती है सहर होने तक