कलंक - The Indic Lyrics Database

कलंक

गीतकार - अमिताभ भट्टाचार्य | गायक - अरिजीत सिंग - शिल्पा राव | संगीत - प्रीतम | फ़िल्म - कलंक | वर्ष - 2019

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हवाओं में बहेंगे घटाओं में रहेंगे
तू बरखा मेरी मैं तेरा बादल पिया
जो तेरे ना हुए तो किसी के ना रहेंगे
दीवानी तू मेरी मैं तेरा पागल पिया
हज़ारों में किसी को तक़दीर ऐसी
मिली है एक राँझा और हीर जैसी
न जाने ये ज़माना क्यों चाहे रे मिटाना
कलंक नहीं इश्क़ है काजल पिया
दुनिया की नज़रों में ये रोग है
हो जिनको वो जाने ये जोग है
एक तरफ़ा शायद हो दिल का भरम
दो तरफ़ा है तो ये संजोग है
लाई रे हमें ज़िंदगानी की कहानी कैसे मोड़ पे
हुए रे खुद से पराए हम किसी से नैना जोड़ के
हज़ारों में किसी को तक़दीर ऐसी
मिली है एक राँझा और हीर जैसी
न जाने ये ज़माना क्यों चाहे रे मिटाना
कलंक नहीं इश्क़ है काजल पिया
मैं तेरा मैं तेरा
मैं तेरा मैं तेरा
मैं गहरा तमस, तू सुनहरा सवेरा
मैं तेरा मैं तेरा
मुसाफ़िर मैं भटका, तू मेरा बसेरा
मैं तेरा मैं तेरा
तू जुगनू चमकता मैं जंगल घनेरा
मैं तेरा मैं तेरा
छुपा भी ना सकेंगे, बता भी ना सकेंगे
हुए है यूँ तेरे प्यार में पागल पिया
जो तेरे ना हुए तो किसी के ना रहेंगे
कि अब न किसी और से लागे जिया
हज़ारों में किसी को तक़दीर ऐसी
मिली है एक राँझा और हीर जैसी
न जाने ये ज़माना क्यों चाहे रे मिटाना
कलंक नहीं इश्क़ है काजल पिया
ठोकर पे दुनिया है, घर-बार है
दिल में जो दिलबर का दरबार है
सजदे में बैठे हैं जितनी दफ़ा
वो मेरी मन्नत में हर बार है
उसी का अब ले रहे हैं
नाम हम तो साँसों की जगह
क्यों जाने एक दिन भी लागे
हमको बारह मासों की तरह
जो अपना है सारा, सजनिया पे वारा
न थामे रे किसी और का आँचल पिया
हज़ारों में किसी को तक़दीर ऐसी..