ये विरानीयाँ , उन दिनों जब के तुम थे यहाँ - The Indic Lyrics Database

ये विरानीयाँ , उन दिनों जब के तुम थे यहाँ

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रवि | फ़िल्म - आज और कल | वर्ष - 1963

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उन दिनों जब के तुम थे यहाँ ...
ज़िन्दगी जागी जागी सी थी,
सारे मौसम बडे मेहरबान दोस्त थे
रास्ते दावतनामें थे जो मंज़िलों ने लिखे थे
जमीन पर हमारे लिये पेड बाहें पसारे खडे थे
हमें छाँव की शाँल पहनाने के वास्ते
शाम को सब सितारें बहोत मुस्कुराते थे
जब देखते थे हमें आती जाती हवाएं
कोई गीत खुशबू का गाती हुई, छेडती थी
गुजर जाती थी
आसमान पिघले निलम का एक गहरा तालाब था
जिसमें हर रात एक चांद का फुल खिलता था
और पिघले निलम की लहरों में बहता हुआ
वो हमारे दिलों के किनारों को छु लेता था
उन दिनों ...जब के तुम थे यहाँ ...
मोहब्बत मेरी जो प्यासी हुई, तो गहरी मेरी उदासी हुई
ज़िन्दगी ...ज़िन्दगी में है तुम बिन ...
ये विरानीयाँ ...ये विरानीयाँ ...ये विरानीयाँ ...
अश्क़ो में जैसे धूल गये सब मुस्कूरातें रंग
रस्ते में थक के सो गई मासूम सी उमंग
दिल है के फिर भी ख्वाब सजाने का शौक है
पत्थर पे भी गुलाब उगाने का शौक है
बरसों से युँ तो इक अमावस की रात है
अब इसको हौसला कँहू के जिद् की बात है...
दिल कहता है अंधेरे में भी रोशनी तो है ...
माना के राख हो गये ... उम्मीद के अलावो ...
इस राख में भी आग कही पर दबी तो है .....
सूने सूने सारे रस्ते हैं, सूनी मंजील है जाना
सूनी सूनी सी मेरी आँखें हैं, सूना दिल है ये जाना ...
मुझे घेरे हैं सिर्फ तनहाईयाँ, मेरे दिल में है सिर्फ खामोशीयाँ
ज़िन्दगी ... ज़िन्दगी में हैं तुम बिन
ये विरानीयाँ ...ये विरानीयाँ ...ये विरानीयाँ ...
आप की याद कैसे आयेगी, आप यह क्यों समझ न पाते हैं
याद तो सिर्फ उनकी आती हैं, हम कभी जिन को भूल जाते हैं
साँस जब लूँ तो सिने में जैसे साँस चुभती हैं जाना ...
दिल में अब तक एक उम्मीद की फांस चुभती है जाना ...
ख्वाब सारे मेरे टूटने ही को हैं
तिनके भी हात से छुटने ही को हैं
ज़िन्दगी .. ज़िन्दगी में हैं तुम बिन
ये विरानीयाँ .. ये विरानीयाँ ... ये विरानीयाँ ...