गीतकार - समीर | गायक - चित्रा सिंह | संगीत - जगजीत सिंह | फ़िल्म - अ साउंड अफेयर | वर्ष - 1985
View in Romanबंद मुठ्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं
है बहाना की मेहंदी लगाए बैठे हैं
टूट के डाली से हाथों पे बिखर जाती है
ये तो मेहंदी है मेहंदी तो रंग लाती है
लोग बागों से इसे तोड़के ले आते हैं
और पत्थर पे इसे शौक से पिसवाते हैं
फिर भी होठों से इसके उफ् तलक ना आती है
अपने रस-रंग से इस दुनिया को सजाना है
काम मेहंदी का तो गैरों के काम आना है
अपने ख़ुश्बू से ये सेहराओं को महकाती है