सावन के महीने में - The Indic Lyrics Database

सावन के महीने में

गीतकार - राजेन्द्र कृष्ण | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - शराबी | वर्ष - 1964

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सोचता हूँ पिऊँ पिऊँ ना पिऊँ
चाक दामन सिऊँ सिऊँ ना सिऊँ
देख कर जाम कश्मकश में हूँ
क्या करूं मैं जिऊँ जिऊँ ना जिऊँ
सावन के महीने में
एक आग सी सीने में
लगती है तो पी लेता हूँ
दो चार घड़ी जी लेता हूँ
चाँद की चाल भी है बहकी हुई
रात की आँख भी शराबी है
सारी कुदरत नशे मैं है जब चूर
अरे मैंने पी ली तो क्या खराबी है
बरसों छलकाए मैंने ये शीशे और ये प्याले
कुछ आज पिला दे ऐसी जो मुझको ही पी डाले
हर रोज़ तो यूँ ही दिलको बहका के मैं पी लेता हूँ
लम्बे जीवन से अच्छा वो एक पल जो अपना हो
उस पल के बाद ये दुनिया क्या ग़म है अगर सपना हो
कुछ सोच के ऐसी बातें घबरा के मैं पी लेता हूँ
मयखाने में आया हूँ मौसम का इशारा पाके
दमभर के लिए बैठा हूँ रंगीन सहारा पा के
साक़ी जो तेरी जिद है तो शरमा के मैं पी लेता हूँ