फुलों से मुखड़े वाली कुदाया कैरो - The Indic Lyrics Database

फुलों से मुखड़े वाली कुदाया कैरो

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - आए दिन बहार के | वर्ष - 1966

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फूलों से मुखड़े वाली निकली है एक मतवाली
गुलशन की करने सैर
( ख़ुदाया ख़ैर ) -२ले थाम ले मेरी बाँहें ऊँची-नीची हैं राहें
कहीं फिसल न जाए पैर
ख़ुदाया ख़ैर ...क्या हाल नज़ारों का होगा क्या रंग बहारों का होगा
ये हुस्न अगर मुस्काया तो क्या इश्क़ के मारों का होगा
मतवाले नैन हैं ऐसे तालाब में जैसे
दो फूल रहे हों तैर
ख़ुदाया ख़ैर ...ये होंठ नहीं अफ़साने हैं अफ़साने नहीं मैख़ाने हैं
न जाने किसकी क़िस्मत में ये प्यार भरे पैमाने हैं
इन होंठों का मस्ताना इन ज़ुल्फ़ों का दीवाना
बन जाए न कोई ग़ैर
ख़ुदाया ख़ैर ...हर एक अदा मस्तानी है ये वक़्त की रानी है
जो पहली बार सुनी मैने वो रंगीन कहानी है
मौजों की तरह चलती है शबनम सी ये जलती है
कलियों से है बैर
ख़ुदाया ख़ैर ...